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हंसवाहिनी, ऐसा वर दो! / अवनीश सिंह चौहान
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19:34, 11 अगस्त 2011
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|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
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<Poem>
मेरी जड़-अनगढ़ वीणा को
हे स्वरदेवी, अपना स्वर दो!
'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' मानें
जागृत हो मम प्रज्ञा पावन
हंसवाहिनी
,
ऐसा वर दो!
</poem>
Abnish
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