{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
नहीं दिखाई देती दीखती अब गौरैयाआज हमारे गाँव-गली-घर या शहरों में
छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर , पिंजड़ों में धर
चिड़ियाघर में उसको लाए
अब सुधिया कभी दिखे ना कोईआते-जाते इन बहरों में
डरी हुई सहमी-सी बैठी गौरैया
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है साँसें दुखतीं
छुट उड़ जाने की आस जगाएलगाए
गोते खाती रहती है छिन-पलछिनअंदर-बाहर की लहरों में
दाना भी है, पानी भी है
बात सभी ने जानी भी है
यहाँ सभी यहाँ चुप हैं राजा-रानीरखकर उसको पहरों में?!
</poem>