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इस बेरुख़ी से प्यार कभी छिप नहीं सकता / गुलाब खंडेलवाल
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20:20, 11 अगस्त 2011
रातों का यह ख़ुमार कभी छिप नहीं सकता
मंज़िल भले ही गर्द
के पांवों
से
पांवों के
छिप गयी
मंज़िल का एतबार कभी छिप नहीं सकता
Vibhajhalani
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