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एक परी / अवनीश सिंह चौहान

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एक परी
आयी महफ़िल में
लेकर एक छड़ी
एक इशारे में
रुक जाती
सबसे बड़ी घड़ी

उसका जादू
घट-घट बोले
गूंगे-बहरे
आँखें खोले
रुक जाते हैं
धावक सारे
जब हो जाय खड़ी

सम्मोहन के
सूत पिरोये
दीवानों को
खूब भिगोये
चाह रही कुछ
हासिल करना
देकर फूल-लड़ी

घड़ी देखकर
बदले पाला
बड़ कुर्सी पर
डाले माला
पढी-लिखी है
लेकिन ज्यादा
उससे कहीं कढ़ी
</poem>
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