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21:11, 11 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
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<Poem>
आवाजें बन
हम धरती की
अम्बर-सा फहराएँ
जीवन दें जल
बनकर मेघा
सागर-सा लहराएँ
टूटे-फूटे
बासन घर के
अपनी व्यथा सुनाएँ
और पड़ोसी
सुन-सुन करके
उन पर नित इठलाएँ
उगा हुआ है
कंटकवन जो
आओ आज जराएँ
आओ हम सब
फूल बनें या
कोयल-सा कुछ गाएँ
भोर किरण का
रूप धरें हम
तम को दूर भगाएँ
बिखरे मोती
चुन-चुन लाएँ
जोड़ें सभी शिराएँ
</poem>