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चौपदियाँ / मुनव्वर राना

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1
कहीं भी छोड़ के अपनी ज़मीं नहीं जाते
2
उम्र एक तल्ख़ हक़ीकत है मुनव्वर फिर भी
3
मियाँ ! मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
मज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इनको काम दो , इसी शहर में एक पुरानी सी इमारत और है ।  हम ईंट-ईंट को दौलत से लाल कर देते, अगर ज़मीर की चिड़िया हलाल कर देते ।   4
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
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