897 bytes added,
11:45, 12 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई !
एक प्रश्न बार-बार
पूछता है मन उघार
तुम इतना क्यों फूले?
नई-नई गंधों से
सांस-सांस हुलसाई!
अंतस में प्यार लिए
मधुरस के आस लिए
भँवरा बन क्यों झूले?
न-नए रागों से
कली-कली मुस्काई!
फिर महकी अमराई
कोयल की ऋतु आई
नए-नए बौरों से
डाल-डाल पगलाई!
</poem>