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कभी दो क़दम, कभी दस क़दम, कभी सौ क़दम भी निकल सके / गुलाब खंडेलवाल
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14:47, 12 अगस्त 2011
तुझे देखे परदा उठाके जो किसी दूसरे की मजाल क्या!
ये तो
आईने
आइने
का कमाल है कि हज़ार रंग बदल सके
तेरे प्यार में है पहुँच गया, मेरा दिल अब ऐसे
मुकाम
मुक़ाम
पर
कि न बढ़ सके, न ठहर सके, न पलट सके, न निकल सके
Vibhajhalani
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