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फिर कहाँ होंगी ये रातें, ये शोख़ियाँ दिल की!
क्या कहेंगे हम उन्हें फिर, जो मुलाक़ात भी हो!
कौन रखता यहाँ प्यार के वादों का हिसाब!
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