{{KKRachna
|रचनाकार=कीर्ति चौधरी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
तुमने हाथ पकड़कर कहा
तुम्हीं हो मेरे मित्र
तुम्हारे बग़ैर अधूरा हूँ मैं
क्या वह तुम्हारा प्रेम था ?
मैंने हाथ छुड़ाकर
मुँह फेर लिया
मेरी आँखों में आँसू थे
यह भी तो प्रेम था।था ।</poem>