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[[Category:हाइकु]]
<poem>
मुँह चिढ़ाती
लम्बे-चौड़े पुल को
सूखती नदी ।
ऊब चले हैं
वर्षा की प्रतीक्षा में
पेड़-पौधे भी।
पीने लगा है
धरती का भी पानी
प्यासा सूरज।
निकली नहीं
कंजूस बादलों से
एक भी बूँद ।
तरस गये
पहचान को खुद
सावन-भादौं ।
कहो तो सही
मन प्राणों से तुम
वक्त सुनेगा ।