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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=ज़िंदगी ! ऐ ज़िंदगी ! / फ़राज़
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<poem>
जिससे ये तबीयत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर एक दिल से लगी थी
तन्हाई में रोते हैं कि यूँ दिल के सुकूँ हो
ये चोट किसी साहिब-ए-महफ़िल से लगी थी
ए दिल तेरे आशोब ने फिर हश्र जगाया
बे दर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी
खिलक़त का अजब हाल था उस कू-ए-सितम में
साए की तरह दामने-कातिल से लगी थी
उतरा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरिया
जब कश्ती-ए-जाँ मौत के साहिल से लगी थी
</poem>