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अरुणकांत जोगी भिखारी तुम हो कौन
नीरव हास्य लिए तुम द्वार पर आये
प्रखर तेज तव न जाए निहारी
रास-विलासिनी मई आहिरिणी
तव श्यामल-किशोर-रूप ही पहचानूं
आज अम्बर में ये कैसा ज्योति पुंज है पसरा
हे गिरिजापति गिरिधारी तुम हो कहाँ

अम्बर-अम्बर महिमा तव छाया
हे!ब्रजेश भैरव ! मैं ब्रजबाला
हे! शिव सुन्दर व्याघ्र-चर्म धारी
धर नटवर वेश पहनो नीपमाला

नव मेघ चन्दन से छुपा लो अंग ज्योति
प्रिय बन दर्शन दो हे! त्रिभुवन पति
मैं नहीं हूँ पार्वती , मैं श्रीमती
विष तज कर बनो बांसुरी धारी
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