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17:45, 18 अगस्त 2011 <poem>
आज भी रोये वन में कोयलिया
चंपा कुञ्ज में आज गुंजन करे भ्रमरा -कुहके पापिया
प्रेम-कुञ्ज भी सूखा हाय!
प्राण -प्रदीप मेरे निहारो हाय!
कहीं बुझ न जाय विरही आओ लौट कर हाय!
तुम्हारा पथ निहारूं हे प्रिय निशिदिन
माला का फूल हुआ धूल में मलिन
जनम मेरा विफल हुआ
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