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नील कुसुम (कविता) / रामधारी सिंह "दिनकर"
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16:54, 21 अगस्त 2011
औ; बड़े शौक़ से मौत पिलाती है जीवन
अपनी छाती से लिपट खेलनेवालों को।
तुम लाशें गिनते रहे खोजनेवालों की,
लेकिन, उनकी असलियत नहीं पहचान सके;
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