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गए साल की तरह आने वाले साल में भी

मृत्यु जीवन पर भारी होगी,

क्योंकि,जीवित हैं अभी दंगों के ब्यापारी

किसानो की आंत अभी गिरवी है साहूकार की दुकान पर

जिसकी रिहाई की शर्त जिस किताब में दर्ज है उसे रखना अब जुर्म है

और उधर जंगलों में छलनी है धरती का सीना

जिसे हत्यारे अपनी मुट्ठी में कैद रखना चाहते है!

जीवित हैं वे सभी जो मेरे देश को मौत का पिरामिड बनाकर

बिना सुबूत जेल में भर दे रहें हैं

इसी आने वाले समय(साल)में निमंत्रण है आप का,

रखी है चाय की केतली अभी भी

ज्वालामुखी के मुहाने पर'
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