वंश चलाने को वो बेटा-बेटी जनती,
इनका निरादर,इस धरती पर रौरव है।
बिन इसके ना हो जाये घर-घर सुनसान।सुनसान।।
अब भी सम्हल जा-----------
सखी-सहेली,छैल-छबीली,वो अलबेली।
बन जाये ना इक दिन वो इतिहास पहेली।
झेल दिनों-दिन, पल-पल दहशत औ प्रताड़ना,
चण्डी-दुर्गा ना बन जाये नार नवेली।
इसका संरक्षण करता कानून–विधान।कानून–विधान।।अब भी सम्हतल सम्हल जा-----------
पर्व,तीज-त्योहार,व्रतोत्सव,लेना-देना।
माँ-बहना-बेटी-बहु है मर्यादा गहना।
कुल-कुटुम्ब की रीत,धरोहर,परम्परायें,
संस्कार कोई भी इनके बिना मने ना।
प्रेम लुटा कर तन-मन-धन करती बलिदान।बलिदान।।अब भी सम्ह ल सम्हल जा-----------
धरा सहिष्णु,नारी सहिष्णु,ममता की मूरत।
सुर मुनि सब इस,आदिशक्ति के हैं आराधक,
मानव में हैं क्यूँ ऐसी,प्रकृति बदसूरत।
भारी मूल्य चुकाना होगा,ऐ मनु!मान।मान।।
अब भी सम्हैल जा------------
हर युग में नारी पर,अति ने,युग बदले हैं,
आज भी अत्याचारों से,बेबस है नारी।
एक प्रलय को पुन: हो रहा अनुसंधान।अनुसंधान।।
अब भी सम्हल जा-----------
रोम रोम से शुक्र फटेगा,तम रग रग से,
प्रकृति करेगी जो बीभत्स,दृश्य तब सर्जित।
प्रकृति प्रलय का तब लेगी स्वप्रसंज्ञान। स्वप्रसंज्ञान।।
अब भी सम्हल जा कर तू नारी का सम्मान।
लोक-संस्कृति समृद्धि नारी का वरदान।
<Poem>