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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatNavgeet}}<poem>लुप्त हों न पलाश<br /><br />बिन तुम्हारे होलिका त्यौहार<br />था इक कल्पना भर<br />हाट में बाक़ायदा<br />तुम स्थान पाते थे बराबर<br /><br />अब कहाँ वो रंग<br />वो रंगीन भू-आकाश<br />लुप्त हों न पलाश<br /><br /><br />'मख-अगन' सा दृष्टिगोचर<br />है तुम्हारा यह कलेवर<br />पर तुम्हारे पात नर ने<br />वार डाले बीडियों पर<br /><br />गाँव तो सब जानते हैं<br />नगर समझें काश<br />लुप्त हों न पलाश<br /><poem>{{KKCatNavgeet}}</poem>