{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatGeet}}<poem>तुझसे बातें करने तेरे दर पे आया हूँ<br />साईं मुझको गले लगा ले, मैं न पराया हूँ<br /><br />ज्ञान की ज्योत जला, मन का अन्धकार हटाया है<br />श्रद्धा और सबूरी का रसपान कराया है<br />कुछ भी नहीं इन्साँ की हस्ती, तूने बताया है<br />कितना गरूर भरा था मन में, तूने मिटाया है<br /><br />तेरे चरनों में अर्पित करने, वो ही सर लाया हूँ<br />साईं मुझको गले लगा ले, मैं न पराया हूँ<br /><br /><br />मन का मैल मिटा कर इसमें, तुझे बिठाऊं मैं<br />तेरी महिमा सुनूँ, सुनाऊँ, हर दम गाऊँ मैं<br />सुनूँ तजुर्बे औरों के, अपने भी सुनाऊँ मैं<br />कम से कम इक बार बरस में, शिर्डी जाऊँ मैं<br /><br />साईं तू मेरा तन है, मैं तेरी छाया हूँ<br />साईं मुझको गले लगा ले, मैं न पराया हूँ<br /><br /><br />अच्छा - बुरा, सबल और निर्बल, निर्धन या धनवान<br />राजा हो या रंक सभी हैं तेरे लिये समान<br />सबके सब तेरे अपने हैं, तू सबका भगवान<br />तेरी क्रपा द्रश्टि का अधिकारी है हर इन्सान<br /><br />यही भरोसा ले के तुझसे मिलने आया हूँ<br />साईं मुझको गले लगा ले, मैं न पराया हूँ<br /><br /><poem>{{KKCatGeet}}</poem>