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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatGeet}}<poem>पहले से ही था क्षोभ ग्रस्त<br />अत्याचारों से हुआ त्रस्त<br />जब आम आदमी हुआ व्यस्त<br />तब आयी ये पन्द्रह अगस्त<br /><br />बलिदानी थे, थे वरद हस्त<br />विख्यात हुए, कुछ रहे अस्त<br />जब चले साथ मिल, सर परस्त<br />तब आयी ये पन्द्रह अगस्त<br /><br />जब हुआ क्रान्ति का पथ प्रशस्त<br />मतभेद हुए सारे निरस्त<br />घातक मनसूबे हुए ध्वस्त<br />तब आयी ये पन्द्रह अगस्त<br /><br />जुङ गये वीर बांके समस्त<br />घर घर से होने लगी गश्त<br />चुन चुन मारे फिरका परस्त<br />तब आयी ये पन्द्रह अगस्त<br /><br />सब चेहरे दिखने लगे मस्त<br />परचम लहराने लगे हस्त<br />जब अंग्रेजों को दी शिकस्त<br />तब आयी ये पन्द्रह अगस्त<br /><br />है प्रगतिशील हर एक दस्त<br />है हिन्द विश्व से फिर बवस्त<br />हैं नीति हमारी सुविश्वस्त<br />बस याद रहे पन्द्रह अगस्त<br /><poem>{{KKCatGeet}}</poem>