मैं{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatKavita}}<br /poem>मैं<br />मैं<br />मैंये बकरी वाली 'में-में' नहीं है<br /><br />ये वो 'मैं' है<br />जो आदमी को <br />शेर से <br />बकरी बनाता है..............<br /><br />मैं,<br />हर बार आदमी को,<br />शेर से बकरी नहीं बनाता...........<br /><br />कभी कभी<br /> बकरी को भी,<br />शेर बना देता है................<br /><br />और कभी कभी,<br /> उस का, <br />स्वयँ से,<br />साक्षात्कार भी करा देता है..............<br /><br />'मैं'<br />किस के अंदर नहीं है?<br />बोलो-बोलो!!!<br /><br />हैं ना सबके अंदर?<br />कम या ज़्यादा!!!!!!<br /><br />और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है<br />इस 'मैं' के बारे में............<br /><br />पर डरता हूँ मैं भी<br />उस कड़वे सत्य को <br />सार्वजनिक रूप से <br />कहते हुए.................<br /><br />इसलिए <br />सिर्फ़ इतना ही कहूँगा<br />कि मैं<br />इस 'मैं' का दीवाना तो बनूँ<br />पर, उतना नहीं-<br />कि ये 'मैं' तो परवान चढ़ जाए<br />और खुद मैं- <br />उलझ के रह जाऊँ,<br />इस परवान चढ़े हुए,<br />'मैं' के द्वारा बुनी गयी-<br />ज़ालियों में............<br /><br />आप क्या कहते हैं?<br /><br /><poem>{{KKCatKavita}}</poem>