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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatKavita}}<poem>मैंने हवा को महसूस किया -<br />शून्य को सम्पन्न बनाते हुए,<br />सरहदों के फासले मिटाते हुए,<br />खुशबु को पंख लगाते हुए,<br />आवाज की दुनिया सजाते हुए,<br />बिना कहीं भी ठहरे,<br />यायावर जीवन बिताते हुए,<br /><br />और फिर मुझे<br />खुद पर तरस आया.<br /><br />मैं -<br />यानि कि एक आदम जात,<br /><br />जो -<br /><br />संपन्नता को शुन्य की ओर<br />ले जा रहा है,<br /><br />सरहदों को छोड़ो,<br />दिलों में भी<br />फासले बढाता जा रहा है,<br /><br />खुशबु की जगह,<br />जहरीली गैसों का<br />अम्बार लगाता जा रहा है,<br /><br />हर वो आवाज,<br />जो दमदार नहीं है,<br />उसे और दबाता जा रहा है,<br /><br />मैं -<br />जिसे कि पहचाना जाता था,<br />मानवीय मूल्यों के शोधकर्ता के रूप में,<br />ठहर चूका हूँ -<br />इर्ष्या और द्वेष की चट्टान पर.<br /><br /><br />और जब ये सब -<br />देखा,<br />सोचा,<br />समझा,<br /><br />सचमुच,<br />मुझे -<br />खुद पर तरस आया.<br /><br /><poem>{{KKCatKavita}}</poem>