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चांदनी छत पे चल रही होगी / दुष्यंत कुमार
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13:25, 30 अगस्त 2011
फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा <br>
वो
बर्फ़-सी
वो
पिघल रही होगी <br> <br>
कल का सपना बहुत सुहाना था <br>
सोचता हूँ कि बंद कमरे में <br>
एक
शम
शमअ
-सी जल रही होगी <br> <br>
तेरे गहनों सी खनखनाती थी <br>
Navincchaturvedi
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