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कुपथ रथ दौड़ाता जो / जानकीवल्लभ शास्त्री
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19:20, 30 अगस्त 2011
(४)
गिरि-शिखरों की उठा बाहुयें, स्पर न अधर तक आता,
आ रे आ, तुझकॊ बुला रही तेरी धरती माता!
समय बीतता जाता है, बीता न बहुर कर आता,
आ रे आ, मरघट को नव फूलों का देश बनाता!
</poem>
Kvsinghdeo
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