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16:29, 1 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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छन्द - रोला
भद्रजनों की रीत नहीं ये संगाकारा
हार गए जो टॉस, किसलिए उसे नकारा|
भद्रजनों की रीत, नहीं ये संगाकारा|
देखी जब ये तुच्छ, आपकी आँख मिचौनी|
चौंक हुए स्तब्ध, जेफ क्रो, शास्त्री, धोनी|1|
तेंदुलकर, सहवाग, ना चले, फर्क पड़ा ना|
गौतम और विराट, खेल खेले मर्दाना|
धोनी लंगर डाल, क्रीज़ से चिपके डट के|
समय समय पर दर्शनीय, फटकारे फटके|2|
जब सर चढ़े जुनून, ख्वाब पूरे होते हैं|
सब के सम्मुख वीर, बालकों से रोते हैं|
दिल से लें जो ठान, फिर किसी की ना मानें|
हार मिले या जीत, धुरंधर लड़ना जानें|3|
त्र्यासी वाली बात, अब न कोई बोलेगा|
सोचेगा सौ बार, शब्द अपने तोलेगा|
अफ्रीका, इंगलेंड, पाक, औसी या लंका|
सब को दे के मात, बजाया हमने डंका|4|
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