{{KKGlobal}}
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|पीछे=कबीर दोहावली / पृष्ठ ५
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जाका गुरु है गीरही, गिरही चेला होय । <BR/>
कीच-कीच के धोवते, दाग न छूटे कोय ॥ 501 ॥ <BR/><BR/>
सावधान और शीलता, सदा प्रफुल्लित गात । <BR/>
निर्विकार गम्भीर मत, धीरज दया बसात ॥ 600 ॥ <BR/><BR/>
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