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विप्लव गायन / बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
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07:33, 4 सितम्बर 2011
विश्व के प्रांगण में घहराए,<br /><br />
नाश! नाश!! हा महानाश!!! की
<br />
<br />
प्रलयंकारी आँख खुल जाए,<br />
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ<br />
Dwivedipravin
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