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कबीर दोहावली / पृष्ठ १०

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कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर । <BR/>
खाली हाथों वह गये, जिनके लाख करोर ॥ 903 ॥ <BR/><BR/>
 
सरगुन की सेवा करो, निरगुन का करो ज्ञान । <BR/>
निरगुन सरगुन के परे, तहीं हमारा ध्यान ॥ 904 ॥ <BR/><BR/>
 
घन गरजै, दामिनि दमकै, बूँदैं बरसैं, झर लाग गए। <BR/>
हर तलाब में कमल खिले, तहाँ भानु परगट भये॥ 905 ॥ <BR/><BR/>
 
क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा। <BR/>
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा ॥ 906 ॥ <BR/><BR/>