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माँ / रमेश तैलंग
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08:30, 5 सितम्बर 2011
माँ कितनी तकलीफ़ें झेल,
बांटे
बाँटे
सुख, सबके दुख ले ले।
दया-धर्म सब रूप हैं माँ के,
और हर रूप निराला है।
</poem>
अनिल जनविजय
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