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नींद टूटने तक / अनीता अग्रवाल

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नींद टूटने तक
भाग्य छलता है
आकांक्षाएँ
छलती है
आदमी की नींद
उजाले को छलती है
उजाला
आदमी की नींद को
नींद टूटने तक
</poem>
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