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09:05, 7 सितम्बर 2011
कैसे पढूं ये पाती
जो लिखी हैं पुरुवा हवाओं पर
ताज़ा और टटके जज्बात
मेरे इस शहर को शहर को बनाने तक
पड़ चुके होंगे पुराने
और मौसम बदल चूका होगा मेरे गाँव का !
सारे आंसू समां गए होंगे
चटकती हुई धरती की दरारों में
खेतों की सींचने में
शब्दों के कल्ले कैसे फूटेंगे
सूखे हुए पपडीदार होंठो पर
ऐसे में पुरुवा हवांए
पेंड़ो की पुंगियों से जमीन पर सरक जायेंगी
छोड़ देंगी तैरकर बटोरना संवेदनाओं को
ऐसे में दादी तुम और तुम
सिर्फ ईश्वर से प्रार्थना कर सकोगी
मैं जहाँ होऊं
सुखी और शांत होऊ!