गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
विदा करने निकली जब माता / गुलाब खंडेलवाल
220 bytes added
,
18:32, 30 अगस्त 2007
विदा
करना
करने
निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ?
कोई तो समझाता !
तब वन में था बल स्वामी का
सिर पर था न अयश का टीका
अब तो छूट रहा भगिनी का
इस घर से ही नाता
Anonymous user
72.66.83.170