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इस शहर में कोई हमसे ख़फ़ा है।
या तो मैं बेवफ़ा हूँ या वो बेवफ़ा है।
हर शख्‍़स यहाँ ''मुज़ब्‍ज़ब '' में है जी रहा,
और जि‍ये जा रहा है अजब फ़लसफ़ा है।
असर है पानी का या तासीर बावफ़ाई की,
यारी नहीं ऐयारी का यह बागे वफ़ा है।
''ज़र्बे लाज़ि‍ब '' लि‍ए घूमते हैं ख्‍़वाबों के सहारे,
जि‍सने कि‍या यक़ीन वह ही लुटा हर दफ़ा है।
मि‍ट्टी में तो नहीं है ख़ुशबू बेवफ़ाई की,