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उदासियाँ समेट ले किसी का अब तो मीत बन / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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05:01, 16 सितम्बर 2011
ये ठीक है कि ज़िन्दगी को कल कि धुन में जी मगर
कभी-कभी
उदास
हो
कभी-कभी
अतीत
बन
तपन बहुत है
प्यास
में दहक
रही है धूप-सीबुझा दे दिल कि आग
को
मौहबब्तों
मुहबब्तों
कि शीत बन
</Poem>
Purshottam abbi "azer"
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