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{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
}}

<poem>
मयकदे मे शराब रहने दे ,
यूं न पी बेहिसाब रहने दे .
तुझको दुनिया समझ न ले पत्थर ,
कुछ तो आंखों में आब रहने दे .
मैं तो अपना सवाल भूल गया ,
तू भी अपना जवाब रहने दे .
मेरी खुशियों का सब हिसाब लिया ,
मेरे ग़म का हिसाब रहने दे .
है हक़ीक़त से लाख बाबस्ता ,
फिर भी आंखों में ख्वाब रहने दे .
प्यार का है अभी नशा मुझपर ,
तू ये अपनी शराब रहने दे .
तूने जो छीन लिया छीन लिया ,
ये ग़ज़ल की क़िताब रहने दे .
</poem>