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ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे / इक़बाल
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02:40, 17 सितम्बर 2011
रहेगी क्या आबरु हमारी जो तू यहाँ बेक़रार होगा ।
मैं जुल्मत-ए-शब में लेके निकलूंगा अपने दरमांदा<ref>थका<
/
ref> कारवां को
शरर फसां होगी आह मेरी, नफ़स मेरा शोला बार होगा ।
Amitprabhakar
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