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12:17, 17 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
तबीयत हमारी है भारी सुबह से
कि याद आ गई है तुम्हारी सुबह से
न थी घर में चीनी तो कल ही बताती
करेगा न बनिया उधारी सुबह से
बता दे कि हम ख़ुद ही सोए थे भूखे
खड़ा अपने द्वारे भिखारी सुबह से
न उसकी हमारी अदावत पे जाओ
हुआ रात झगड़ा, तो यारी सुबह से
हुआ अपशगुन ये कि इक नेता जी पे
नज़र पड़ गई है हमारी सुबह से
परिन्दों की दहशत है वाजिब 'अकेला'
खडे हर तरफ़ हैं शिकारी सुबह से
<poem>