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जलते बदन हैं दोनो पैदा है होती आग / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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12:34, 17 सितम्बर 2011
<poem>
जलते बदन हैं
दोनो
दोनों
पैदा है होती आग
जितना बुझाओ इसको बढ़ती है उतनी आग
Purshottam abbi "azer"
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