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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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बनी तस्वीर या बिगड़ी , जहाँ में रंग भर आए
बसा है ख्वाब में मेरे, अजब अरमान का मंज़र
अभी कुछ आस है‘’आज़र’न जाने कब डगर आए
 
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