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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
चिकनी चुपड़ी बातों के मतलब मैं बोलूँगा
निश्चित ही हंगामा होगा जब मैं बोलूँगा

मेरे बच्चों के पालन का ज़िम्मा तो लीजे
जो भी देखा है मैंने वो सब मैं बोलूँगा

मुझ पर हँसिए जी भर लेकिन तब चुप रहिएगा
आप सभी लोगों के जब करतब मैं बोलूँगा

भाट नहीं हूँ जैसा बुलवाओ वैसा बोलूँ
सुब्ह कहूँगा कैसे, शब को शब मैं बोलूँगा

जैसे भी हो काम बनाना है तुम हँसना मत
कल जब उस चपरासी को साहब मैं बोलूँगा

दुनिया वालों को उनकी औक़ात बता तो दूँ
फिर अशआर तेरी ख़ातिर यारब मैं बोलूँगा

ख़तरे में अस्तित्व ‘अकेला’ चुप कैसे बैठूँ
गर अब भी चुपचाप रहा तो कब मैं बोलूँगा
<poem>
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