Changes

दुआ / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

1,114 bytes added, 17:28, 17 सितम्बर 2011
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem> घर से निकला त…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
घर से निकला तो माँ ने मुझसे कहा-
जाओ, जाते हो मगर
बात इतनी ज़हन से चिपका लो
जब कभी तुम फलक से गुज़रो तो
संभल के चलना और कुछ भी मत छूना
चाँद-तारों की वादी आएगी
लगा जो पाँव का ठोकर तो टूट जायेंगे
बड़े नुकीले हैं ये चुभ भी सकते हैं
और जब धूप जाग जाए तभी सफर करना
कि धूप में ही बसर करते हैं ठंडे साये
अब कहाँ छाँव है मिलने वाली
खुदा करे की महफूज़ रहो हर ग़म से
मेरी दुआएं तेरे साथ है बेटा...
<Poem>
Mover, Reupload, Uploader
301
edits