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फुटकर शेर /निश्तर ख़ानक़ाही

194 bytes added, 08:29, 19 सितम्बर 2011
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
किस-किस के घर का नूर थी मेरे लहू की आग
जब बुझ गया तो फिर से जलाया गया मुझे
 
मैं भी तो इक सवाल था हल ढूँढते मेरा
ये क्या कि चुटकियों में उड़ाया गया मुझे
सुबह मिलते हैं मुझे अख़बार में लिपटे हुए
हवाएँ गर्द की सूरत उड़ा रहीं हैं मुझे
न अब ज़मीं ही मेरी है ,न आसमान मेरा