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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
उठती शंकाओं पर सोच-विचार बहुत आवश्यक है
इस बीमार व्यवस्था का उपचार बहुत आवश्यक है

अधिकारों की ख़ातिर तुम संघर्ष करो, पर ध्यान रहे
तुम नारी हो मर्यादित व्यवहार बहुत आवश्यक है

सागर की यात्रा को तत्पर नाविक पूछ रहा देखो
क्या नौका तैराने को पतवार बहुत आवश्यक है

दम घुट जाएगा तुम इतने भी यथार्थवादी न बनो
जीना है तो सपनों का संसार बहुत आवश्यक है

धर्म तुम्हारा कुछ भी बोले, मानवता ये कहती है
उस विधवा लड़की का फिर सिंगार बहुत आवश्यक है

प्रेयसि! दुनिया बहुत बुरी है और फिर बाहर चलना है
क्या गर्दन पर ये सोने का हार बहुत आवश्यक है

काफी कर ली है जनसेवा कृपा करें अब रहने दें
नेता जी, क्या देश पे ये उपकार बहुत आवश्यक है
</poem>
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