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|रचनाकार=गोपाल कृष्ण0 कृष्ण भट्ट 'आकुल'
|संग्रह=
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वंश चलै वा से बढ़ै, कुल कुटुम्‍ब कौ नाम।
मात-पि‍ता कौ यश बढ़ै, करें सपूत प्रनाम।।7।।
 
परम पि‍ता परमात्‍मा, जग कौ पालनहार।
घर में पि‍ता प्रमान है, घर कौ तारनहार।।8।।
 
बेटी खींचे जनक हि‍य, बेटा माँ की जान।
बनै सखा जब पूत के, भि‍ड़ैं कान सौं कान।।9।।
 
'आकुल' महि‍मा जनक की, जि‍ससे जग अंजान।
मनुस्‍मृति‍ में लेख है, पि‍ता सौ आचार्य समान।।10।।
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