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हिरना आँखें / कैलाश गौतम

No change in size, 03:09, 20 सितम्बर 2011
दूर कहीं बरसा है पानी
सोंधी गंध हवाओं में
सिर धुनती लोटेंगी लौटेंगी लहरें
कल से इन्हीं दिशाओं में
रेत की मछली छू जाती