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जब हवा सीटियाँ बजाती है / ओम निश्चल
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09:09, 20 सितम्बर 2011
फिर हवाएँ हुईं सरस-शीतल,
मुट्ठियों से शहद छिड़कता है
द्वार
का
पर
सन्त-सा खड़ा पीपल,
दिन रुई-सा
इधर-उधर उड़ता
Om nishchal
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