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16:17, 20 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=शब्दि सक्रिय हैं
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<Poem>
मेघ का, मल्हार का
मौसम ठहर जाए,
कुछ करो---
यह प्यार का मौसम ठहर जाए।
जल रहा मन आज
सुधियों के अंगारों में,
दर्द कुछ हल्कार हुआ है
इन फुहारों में,
रुप का, अभिसार का
मौसम ठहर जाए।
कुछ करो---
यह प्यार का मौसम ठहर जाए।
बादलों की गंध में
खोया हुआ है मन,
हो रही शिराओं में
सावनी सिहरन
जीत का, यह हार का
मौसम ठहर जाए,
कुछ करो--
यह प्यारर का मौसम ठहर जाए।
तुम सुनाओं ग़ज़ल कोई
गीत हम गाऍं,
क्याह पता हम-तुम
कहीं फिर दूर हो जाऍं,
मान का, मनुहार का
मौसम ठहर जाए,
कुछ करो---
यह प्यार का मौसम ठहर जाए।
<Poem>