1,773 bytes added,
16:20, 20 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=शब्दि सक्रिय हैं
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
सॉंस तुम्हाeरी योजनगंधा,
मेघदूत-सा मन मेरा है।
दूध धुले हैं पॉंव तुम्हाैरे
अंग-अंग दिखती उबटन है
मेरी जन्मुकुंडली जिसमें
लिखी हुई हर पल भटकन है
कैसे चलूँ तुम्हाटरे द्वारे
तुम रतनारी,हम कजरारे,
कमलनाल-सी देह तुम्हादरी
देवदारु-सा तन मेरा है।
साँझ तुम्हें प्याररी लगती है
प्रात सुहाना फूलों वाला
मुझे डँसा करता है हर पल
सूरज का रंगीन उजाला
कैसे पास तुम्हाजरे आऊँ
चंचल मन कैसे बहलाऊँ
हँसी तुम्हाेरे होठ लिखी है
दर्द भरा यौवन मेरा है।
सुबह जगाता सूरज तुमको
सॉंझ सुला जाती पुरवाई,
मुझसे दूर खड़ी होती है
मेरी अपनी ही परछाईं
बाधाओं के बीच गुजरना
तुमसे झूठ मुझे क्याा कहना
सीमाओं का साथ तुम्हारा
सैलानी जीवन मेरा है।
<Poem>