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02:33, 21 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=शब्दि सक्रिय हैं
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<Poem>
बँगले में रहना जी
मोटर में घूमना
मेरी पगडंडी मत भूलना।
भूल गयी होंगी वे
नेह छोह की बातें
पाती लिख लिख प्रियवर
भेज रही सौगातें
हँसी खुशी रहना जी
फूलों सा झूमना
पर मेरी याद नहीं भूलना।
मेरी पगडंडी मत भूलना।।
माना, मैं भोली हूँ
अपढ़ हूँ गँवारन हूँ
पर दिल की सच्ची हूँ
प्रेम की पुजारन हूँ
गॉंव से गुजरना जी
शहर से गुजरना जी
प्यार भरी देहरी मत भूलना।
मेरी पगडंडी मत भूलना।।
अलसाई ऑंखों में
आ रे निदियॉं आ रे,
पलकों में पाल रही हूँ
मैं सपने क्वाँरे
चाहे जो करना जी
एक अरज सुनना जी
ये क्वॉंरे सपने मत तोड़ना।
मेरी पगडंडी मत भूलना।।
<Poem>