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दीवाली पर पिया / ओम निश्चल

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|रचनाकार=ओम निश्चल
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<Poem>
दीवाली पर पिया,
चौमुख दरवाजे पर बालूँगी मैं दिया।
ओ पिया।

उभरेंगे ऑंखों में सपनों के इंद्रधनुष,
होठों पर सोनजुही सुबह मुस्कइराएगी,
माथे पर खिंच जाऍंगी भोली सलवटें
अगवारे पिछवारे फसल महमहाएगी

हेर हेर फूलों की पॉंखुरी जुटाऊँगी,
ऑंगन-चौबारे छितराऊँगी मैं पिया।
ओ पिया।

माखन मिसरी बातें शोख मावसी रातें,
अल्ह ड़ सौगंधों की नेह-सनी सौगातें,
फिर होंगे हरे भरे दिन रंगत नई नई
ताजा होंगी फिर फिर सावनी मुलाकातें

पास बैठ कर मन की गॉंठें सुलझाऊँगी,
सिरहाने गीत बन रिझाऊँगी मैं जिया।
ओ पिया।

आना जी, मावस को सॉंझ ढले आना
दूर यों अकेले में दिल मत बहलाना,
साथ दीप बालेंगे सुनेंगे हवाओं में......
खुशमिजाज़ चिड़ियों का बस स्वर थहराना

मन से मन जोड़ूँगी, हर संयम तोडूँगी
सुख दुख से जुड़ कर सहलाऊँगी मैं हिया।
ओ पिया।
<Poem>
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